इस काल में योग एक स्पष्ट और समग्र रूप में सामने आया। पतञ्जलि ने वेद में बिखरी योग विद्या को 200 ई.पू. पहली बार समग्र रूप में प्रस्तुत किया। उन्होने सार रूप योग के 195 सूत्र संकलित किए (देखें, योगसूत्र)। पतंजलि सूत्र का योग, राजयोग है। इसके आठ अंग हैं: यम (सामाजिक आचरण), नियम (व्यक्तिगत आचरण), आसन (शारीरिक आसन), प्राणायाम (श्वास विनियमन), प्रत्याहार (इंद्रियों की वापसी), धारणा (एकाग्रता), ध्यान (मेडिटेशन) और समाधि। यद्यपि पतंजलि योग में शारीरिक मुद्राओं एवं श्वसन को भी स्थान दिया गया है लेकिन ध्यान और समाधि को अधिक महत्त्व दिया गया है। योगसूत्र में किसी भी आसन या प्राणायाम का नाम नहीं है।
इसी काल में योग से सम्बन्धित कई ग्रन्थ रचे गए, जिनमें पतंजलि का योगसूत्र, योगयाज्ञवल्क्य, योगाचारभूमिशास्त्र, और विसुद्धिमग्ग प्रमुख हैं।
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