Health Products

Friday, August 26, 2022

आधुनिक काल

 स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो के धर्म संसद में अपने ऐतिहासिक भाषण में योग का उल्लेख कर सारे विश्व को योग से परिचित कराया। महर्षि महेश योगी, परमहंस योगानन्द, रमण महर्षि जैसे कई योगियों ने पश्चिमी दुनिया को प्रभावित किया और धीरे-धीरे योग एक धर्मनिरपेक्ष, प्रक्रिया-आधारित धार्मिक सिद्धान्त के रूप में दुनिया भर में स्वीकार किया गया।


हाल के दिनों में, टी. कृष्णमाचार्य के तीन शिष्यों, बी.के.एस आयंगर, पट्टाभि जोइस और टी.वी.के देशिकाचार विश्व स्तर पर योग को लोकप्रिय बनाया है।


११ दिसम्बर सन २०१४ को भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में २१ जून को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा था जिसे 193 देशों में से 175 देशों ने बिना किसी मतदान के स्वीकार कर लिया। यूएन ने योग की महत्ता को स्वीकारते हुए माना कि ‘योग मानव स्वास्थ्य व कल्याण की दिशा में एक सम्पूर्ण नजरिया है।’

मध्ययुग (500 ई से 1500 ई)

 इस काल में पतंजलि योग के अनुयायियों ने आसन, शरीर और मन की सफाई, क्रियाएँ और प्राणायाम करने को अधिक से अधिक महत्व देकर योग को एक नया दृष्टिकोण या नया मोड़ दिया। योग का यह रूप हठयोग कहलाता है। इस युग में योग की छोटी-छोटी पद्धतियाँ शुरू हुईं।

शास्त्रीय काल (200 ईसा पूर्व से 500 ई)

 इस काल में योग एक स्पष्ट और समग्र रूप में सामने आया। पतञ्जलि ने वेद में बिखरी योग विद्या को 200 ई.पू. पहली बार समग्र रूप में प्रस्तुत किया। उन्होने सार रूप योग के 195 सूत्र संकलित किए (देखें, योगसूत्र)। पतंजलि सूत्र का योग, राजयोग है। इसके आठ अंग हैं: यम (सामाजिक आचरण), नियम (व्यक्तिगत आचरण), आसन (शारीरिक आसन), प्राणायाम (श्वास विनियमन), प्रत्याहार (इंद्रियों की वापसी), धारणा (एकाग्रता), ध्यान (मेडिटेशन) और समाधि। यद्यपि पतंजलि योग में शारीरिक मुद्राओं एवं श्वसन को भी स्थान दिया गया है लेकिन ध्यान और समाधि को अधिक महत्त्व दिया गया है। योगसूत्र में किसी भी आसन या प्राणायाम का नाम नहीं है।


इसी काल में योग से सम्बन्धित कई ग्रन्थ रचे गए, जिनमें पतंजलि का योगसूत्र, योगयाज्ञवल्क्य, योगाचारभूमिशास्त्र, और विसुद्धिमग्ग प्रमुख हैं।

Thursday, August 25, 2022

पूर्वशास्त्रीय काल (500 ईसा पूर्व से 200 ईसा पूर्व तक)

 उपनिषदों, महाभारत और भगवद्‌गीता में योग के बारे में बहुत चर्चा हुई है। भगवद्गीता में ज्ञान योग, भक्ति योग, कर्म योग और राज योग का उल्लेख है। गीतोपदेश में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं अर्जुन को योग का महत्व बताते हुए कर्मयोग, भक्तियोग व ज्ञानयोग का वर्णन करते हैं। गीता के चौथे अध्याय के पहले श्लोक में कृष्ण अर्जुन से कहते हैं-


इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।

विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्॥ 

अर्थात् हे अर्जुन मैने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा था , सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा।


इस अवधि में योग, श्वसन एवं मुद्रा सम्बंधी अभ्यास न होकर एक जीवनशैली बन गया था। उपनिषद् में इसके पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं। कठोपनिषद में इसके लक्षण को बताया गया है-


तां योगमित्तिमन्यन्ते स्थिरोमिन्द्रिय धारणम्

जैन और बौद्ध जागरण और उत्थान काल के दौर में यम और नियम के अंगों पर जोर दिया जाने लगा। यम और नियम अर्थात अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, अस्तेय, अपरिग्रह, शौच, संतोष, तप और स्वाध्याय का प्रचलन ही अधिक रहा। यहाँ तक योग को सुव्यवस्थित रूप नहीं दिया गया था। 563 से 200 ई.पू. योग के तीन अंग - तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान - का प्रचलन था। इसे 'क्रियायोग' कहा जाता है।


प्रसिद्ध संवाद, “योग याज्ञवल्क्य” में, जोकि बृहदारण्यक उपनिषद में वर्णित है, में याज्ञवल्क्य और गार्गी के बीच कई साँस लेने सम्बन्धी व्यायाम, शरीर की सफाई के लिए आसन और ध्यान का उल्लेख है। गार्गी द्वारा छांदोग्य उपनिषद में भी योगासन के बारे में बात की गई है।

वैदिक काल (3000 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व)

 वैदिक काल में एकाग्रता का विकास करने के लिए और सांसारिक कठिनाइयों को पार करने के लिए योगाभ्यास किया जाता था। पुरातन काल के योगासनों में और वर्तमान योगासनों में बहुत अन्तर है। इस काल में यज्ञ और योग का बहुत महत्व था। ब्रह्मचर्य आश्रम में वेदों की शिक्षा के साथ ही शस्त्र और योग की शिक्षा भी दी जाती थी।


यस्मादृते न सिध्यति यज्ञो विपश्चितश्चन। स धीनां योगमिन्वति॥' ( ऋक्संहिता, मंडल-1, सूक्त-18, मंत्र-7)

अर्थात- योग के बिना विद्वान का भी कोई यज्ञकर्म सिद्ध नहीं होता।

स घा नो योग आभुवत् स राये स पुरं ध्याम। गमद् वाजेभिरा स न:॥' ( ऋग्वेद 1-5-3 )

अर्थात वही परमात्मा हमारी समाधि के निमित्त अभिमुख हो, उसकी दया से समाधि, विवेक, ख्याति तथा ऋतम्भरा प्रज्ञा का हमें लाभ हो, अपितु वही परमात्मा अणिमा आदि सिद्धियों के सहित हमारी ओर आगमन करे।

पूर्व वैदिक काल (ईसा पूर्व 3000 से पहले)

 अभी हाल तक, पश्चिमी विद्वान ये मानते आये थे कि योग का जन्म करीब 500 ईसा पूर्व हुआ था जब बौद्ध धर्म का प्रादुर्भाव हुआ। 

लेकिन हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में जो उत्खनन हुआ, उससे प्राप्त योग मुद्राओं से ज्ञात होता है कि योग का चलन 5000 वर्ष पहले से ही था।

Wednesday, August 24, 2022

योग का इतिहास

 योग की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है और इसकी उत्‍पत्ति हजारों वर्ष पहले हुई थी। ऐसा माना जाता है कि जब से सभ्‍यता शुरू हुई है तभी से योग किया जा रहा है। अर्थात प्राचीनतम धर्मों या आस्‍थाओं (faiths) के जन्‍म लेने से काफी पहले योग का जन्म हो चुका था। योग विद्या में शिव को "आदि योगी" तथा "आदि गुरू" माना जाता है।


भगवान शंकर के बाद वैदिक ऋषि-मुनियों से ही योग का प्रारम्भ माना जाता है। बाद में कृष्ण, महावीर और बुद्ध ने इसे अपनी तरह से विस्तार दिया। इसके पश्चात पतञ्जलि ने इसे सुव्यवस्थित रूप दिया। इस रूप को ही आगे चलकर सिद्धपंथ, शैवपंथ, नाथपंथ, वैष्णव और शाक्त पंथियों ने अपने-अपने तरीके से विस्तार दिया।


योग से सम्बन्धित सबसे प्राचीन ऐतिहासिक साक्ष्य सिन्धु घाटी सभ्यता से प्राप्त वस्तुएँ हैं जिनकी शारीरिक मुद्राएँ और आसन उस काल में योग के अस्तित्व के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। योग के इतिहास पर यदि हम दृष्टिपात करे तो इसके प्रारम्भ या अन्त का कोई प्रमाण नही मिलता, लेकिन योग का वर्णन सर्वप्रथम वेदों में मिलता है और वेद सबसे प्राचीन साहित्य माने जाते है। योग की शुरुआत भारत में हुई थी, आज के समय में भारत देश के कई राज्यों में योग में ध्यान दिया जा रहा है जिसमे सबसे आगे उत्तराखंड राज्य है, उत्तराखंड के ऋषिकेश को योग नगरी के नाम से भी जाना जाता है।

योग का महत्व

 योग साधना के आठ अंग हैं, जिनमें प्राणायाम चौथा सोपान है। अब तक हमने यम, नियम तथा योगासन के विषय में चर्चा की है, जो हमारे शरीर को ठीक रखने के लिए बहुत आवश्यक है।


प्राणायाम के बाद प्रत्याहार, ध्यान, धारणा तथा समाधि मानसिक साधन हैं। प्राणायाम दोनों प्रकार की साधनाओं के बीच का साधन है, अर्थात्‌ यह शारीरिक भी है और मानसिक भी। प्राणायाम से शरीर और मन दोनों स्वस्थ एवं पवित्र हो जाते हैं तथा मन का निग्रह होता है।

स्वामी विवेकानंद का आसन पर क्या है मत

 महर्षि पतंजलि प्रणीत अष्टांग योग के आसन समेत सभी अंगों को स्वामी विवेकानंद बहुत महत्वपूर्ण मानते थे। उनका मानना था कि योग के उच्चतर अंगों में जाने से पहले आसन का अभ्यास बहुत महत्वपूर्ण है। स्वामी जी कहते हैं, "यम और नियम के बाद आसन आता है। जब तक बहुत उच्च अवस्था की प्राप्ति नहीं हो जाती, तब तक रोज़ नियमानुसार कुछ शारीरिक और मानसिक क्रियाएँ करनी पड़ती हैं। अतएव जिससे दीर्घकाल तक एक भाव से बैठा जा सके, ऐसे एक आसन का अभ्यास आवश्यक है। जिनको जिस आसन से सुभीता मालूम होता हो, उनको उसी आसन पर बैठना चाहिए। एक व्यक्ति के लिए एक प्रकार से बैठकर सोचना सहज हो सकता है, परन्तु दूसरे के लिए, सम्भव है, वह बहुत कठिन जान पड़े।


स्वामी विवेकानन्द का मत है कि ध्यान-धारणा आदि के लिए सीधे बैठना अत्यन्त आवश्यक है। उनके अनुसार "आसन के सम्बन्ध में इतना समझ लेना होगा कि मेरुदण्ड को सहज भाव से रखना आवश्यक है–ठीक सीधा बैठना होगा–वक्ष, ग्रीवा और मस्तक सीधे और समुन्नत रहें, जिससे देह का सारा भार पसलियों पर पड़े। यह तुम सहज ही समझ सकोगे कि वक्ष यदि नीचे की ओर झुका रहे, तो किसी प्रकार का उच्च चिंतन करना संभव नहीं। वे अन्यत्र आसन के इसी रूप पर ज़ोर देते हुए कहते हैं, "आसन के बारे में इतना ही समझ लेना चाहिए कि वक्षस्थल, ग्रीवा और सिर को सीधे रखकर शरीर को स्वच्छंद भाव से रखना होगा।

Tuesday, August 23, 2022

समय निकालकर करें योगासन नहीं होगी स्वास्थ्य संबंध कोई परेशानी

 उन लोगों के लिए जो कंप्यूटर पर लगातार आठ से दस घंटे काम करके कई तरह के रोगों का शिकार हो जाते हैं या फिर तनाव व थकान से ग्रस्त रहते हैं। निश्‍चित ही कंप्यूटर पर लगातार आँखे गड़ाए रखने के अपने नुकसान तो हैं ही इसके अलावा भी ऐसी कई छोटी-छोटी समस्याएँ भी पैदा होती है, जिससे हम जाने-अनजाने लड़ते रहते है। तो आओं जाने की इन सबसे कैसे निजात पाएँ।


नुकसान

स्मृति दोष, दूर दृष्टि कमजोर पड़ना, चिड़चिड़ापन, पीठ दर्द, अनावश्यक थकान आदि। कंप्यूटर पर लगातार काम करते रहने से हमारा मस्तिष्क और हमारी आँखें इस कदर थक जाती है कि केवल निद्रा से उसे राहत नहीं मिल सकती। देखने में आया है कि कंप्यूटर पर रोज आठ से दस घंटे काम करने वाले अधिकतर लोगों को दृष्टि दोष हो चला है। वे किसी न किसी नंबर का चश्मा पहने लगे हैं। इसके अलावा उनमें स्मृति दोष भी पाया गया। काम के बोझ और दबाव की वजह से उनमें चिड़चिड़ापन भी आम बात हो चली है। यह बात अलग है कि वह ऑफिस का गुस्सा घर पर निकाले। कंप्यूटर की वजह से जो भारी शारीरिक और मानसिक हानि पहुँचती है, उसकी चर्चा विशेषज्ञ अकसर करते रहे हैं।


बचाव

पहली बात कि आपका कंप्यूटर आपकी आँखों के ठीक सामने रखा हो। ऐसा न हो की आपको अपनी आँखों की पुतलियों को ऊपर उठाये रखना पड़े, तो जरा सिस्टम जमा लें जो आँखों से कम से कम तीन फिट दूर हो। दूसरी बात कंप्यूटर पर काम करते वक्त अपनी सुविधानुसार हर 5 से 10 मिनट बाद 20 फुट दूर देखें। इससे दूर ‍दृष्‍टि बनी रहेगी। स्मृति दोष से बचने के लिए अपने दिनभर के काम को रात में उल्टेक्रम में याद करें। जो भी खान-पान है उस पर पुन: विचार करें। थकान मिटाने के लिए ध्यान और योग निद्रा का लाभ लें।


योग एक्सरसाइज

इसे अंग संचालन भी कहते हैं। प्रत्येक अंग संचालन के अलग-अलग नाम हैं, लेकिन हम विस्तार में न जाते हुए बताते हैं कि आँखों की पुतलियों को दाएँ-बाएँ और ऊपर-नीचे ‍नीचे घुमाते हुए फिर गोल-गोल घुमाएँ। इससे आँखों की माँसपेशियाँ मजबूत होंगी। पीठ दर्द से निजात के लिए दाएँ-बाएँ बाजू को कोहनी से मोड़िए और दोनों हाथों की अँगुलियों को कंधे पर रखें। फिर दोनों हाथों की कोहनियों को मिलाते हुए और साँस भरते हुए कोहनियों को सामने से ऊपर की ओर ले जाते हुए घुमाते हुए नीचे की ओर साँस छोड़ते हुए ले जाएँ। ऐसा 5 से 6 बार करें ‍फिर कोहनियों को विपरीत दिशा में घुमाइए। गर्दन को दाएँ-बाएँ, फिर ऊपर-नीचे नीचे करने के बाद गोल-गोल पहले दाएँ से बाएँ फिर बाएँ से दाएँ घुमाएँ। बस इतना ही। इसमें साँस को लेने और छोड़ने का ध्यान जरूर रखें।

योगमुद्रा के लाभ अनेक

 योग शास्त्र में मुद्राओं का एक अलग विभाग है। इन मुद्राओं का निर्माण आसन, प्राणायाम एवं बंधों को समन्वित कर किया गया है।


मुद्राओं के माध्यम से हम शरीर की उन क्रियाओं को नियमित करने का प्रयास करते हैं, जो हमारे वश में नहीं हैं।


योगमुद्रा को कुछ योगाचार्यों ने 'मुद्रा' के और कुछ ने 'आसनों' के समूह में रखा है, लेकिन इसे आसन ही माना गया है। यह आसन करने में अत्यंत सरल है।


सर्वप्रथम पद्मासन में बैठते हैं, इसके बाद दोनों हाथ पीछे लेकर दाहिने हाथ से बाएं हाथ की कलाई पकड़ते हैं। अब लंबी और गहरी श्वास अंदर लेते हैं तथा शरीर को शिथिल करते हुए धड़ को धीरे-धीरे बाईं जंघा पर रखते हैं। ऐसा करते समय श्वास छोड़ते हैं।


कुछ समय तक इसी अवस्था में रहने के बाद पुनः पहले वाली स्थिति में आ जाते हैं। अब यही क्रिया सामने की ओर झुककर करते हैं। ऐसा करते समय मस्तक और नाक दोनों जमीन से स्पर्श करते हैं। कुछ समय तक इसी अवस्था में रहने के बाद मूल स्थिति में आते हैं। फिर धड़ को दाहिनी जंघा पर रखते हैं।


यह आसन करने में आसान परंतु बड़ा लाभदायक है। इससे पेट का व्यायाम होता है तथा अपचन एवं पेट की अन्य शिकायतें दूर होती हैं। रीढ़ की हड्डी का भी अच्छा व्यायाम होता है और वह अपना काम सुचारु रूप से करती है। इस आसन के दौरान गर्दन एवं टांगों की मांसपेशियों का भी व्यायाम होता है।


कभी-कभी धड़ को सामने या दाहिनी ओर झुकाते समय पीठ, घुटनों या जांघों पर अधिक जोर पड़ता है। ऐसे समय जोर-जबर्दस्ती न करें।

Monday, August 22, 2022

पद्मासन विधि

शांति या सुख का अनुभव करना या बोध करना अलौकिक ज्ञान प्राप्त करने जैसा है, यह तभी संभव है, जब आप पूर्णतः स्वस्थ हों। अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करने के यूँ तो कई तरीके हैं, उनमें से ही एक आसान तरीका है योगासन व प्राणायाम करना।

पद्मासन विधि: जमीन पर बैठकर बाएँ पैर की एड़ी को दाईं जंघा पर इस प्रकार रखते हैं कि एड़ी नाभि के पास आ जाएँ। इसके बाद दाएँ पाँव को उठाकर बाईं जंघा पर इस प्रकार रखें कि दोनों एड़ियाँ नाभि के पास आपस में मिल जाएँ।

मेरुदण्ड सहित कमर से ऊपरी भाग को पूर्णतया सीधा रखें। ध्यान रहे कि दोनों घुटने जमीन से उठने न पाएँ। तत्पश्चात दोनों हाथों की हथेलियों को गोद में रखते हुए स्थिर रहें। इसको पुनः पाँव बदलकर भी करना चाहिए। फिर दृष्टि को नासाग्रभाग पर स्थिर करके शांत बैठ जाएँ।

विशेष : स्मरण रहे कि ध्यान, समाधि आदि में बैठने वाले आसनों में मेरुदण्ड, कटिभाग और सिर को सीधा रखा जाता है और स्थिरतापूर्वक बैठना होता है। ध्यान समाधि के काल में नेत्र बंद कर लेना चाहिए। आँखे दीर्घ काल तक खुली रहने से आँखों की तरलता नष्ट होकर उनमें विकार पैदा हो जाने की संभावना रहती है।

लाभ : यह आसन पाँवों की वातादि अनेक व्याधियों को दूर करता है। विशेष कर कटिभाग तथा टाँगों की संधि एवं तत्संबंधित नस-नाड़ियों को लचक, दृढ़ और स्फूर्तियुक्त बनाता है। श्वसन क्रिया को सम रखता है। इन्द्रिय और मन को शांत एवं एकाग्र करता है।

  • इससे बुद्धि बढ़ती एवं सात्विक होती है। चित्त में स्थिरता आती है। स्मरण शक्ति एवं विचार शक्ति बढ़ती है। वीर्य वृद्धि होती है। सन्धिवात ठीक होता है।

कपाल भाति क्रिया

 अपनी एड़ी पर बैठकर पेट को ढीला छोड़ दें। तेजी से साँस बाहर निकालें और पेट को भीतर की ओर खींचें। साँस को बाहर निकालने और पेट को धौंकनी की तरह पिचकाने के बीच सामंजस्य रखें। प्रारंभ में दस बार यह क्रिया करें, धीरे-धीरे 60 तक बढ़ा दें। बीच-बीच में विश्राम ले सकते हैं। 

इस क्रिया से फेफड़े के निचले हिस्से की प्रयुक्त हवा एवं कार्बन डाइ ऑक्साइड बाहर निकल जाती है और सायनस साफ हो जाती है साथ ही पेट पर जमी फालतू चर्बी खत्म हो जाती है। 

इस प्राणायाम को करने के बाद अनुलोम विलोम प्राणायाम भी करे, कपाल भाती और अनुलोम विलोम प्राणायाम दोनो मित्र प्राणायाम है

शवासन

 इस आसन में आपको कुछ नहीं करना है। 

आप एकदम सहज और शांत हो जाएँ तो मन और शरीर को आराम मिलेगा। 

दबाव और थकान खत्म हो जाएगी। 

साँस और नाड़ी की गति सामान्य हो जाएगी। 

इसे करने के लिए पीठ के बल लेट जाइए। 

पैरों को ढीला छोड़कर भुजाओं को शरीर से सटाकर बगल में रख लें। 

शरीर को फर्श पर पूर्णतया स्थिर हो जाने दें।

पादहस्त आसन

 सीधे खड़ा होकर अपने नितंब और पेट को कड़ा कीजिए और पसलियों को ऊपर खीचें। अपनी भुजाओं को धीरे से सिर के ऊपर तक ले जाइए। अब हाथ के दोनों अँगूठों को आपस में बाँध लीजिए। साँस लीजिए और शरीर के ऊपरी हिस्से को दाहिनी ओर झुकाइए। सामान्य ढंग से साँस लेते हुए दस तक गिनती गिनें फिर सीधे हो जाएँ और बाएँ मुड़कर यही क्रिया दस गिनने तक दोहराएँ।


पुन: सीधे खड़े होकर जोर से साँस खींचें। इसके पश्चात कूल्हे के ऊपर से अपने शरीर को सीधे सामने की ओर ले जाइए। फर्श और छाती समानांतर हों। ऐसा करते समय सामान्य तरीके से साँस लेते रहें। अपने धड़ को सीधी रेखा में रखते हुए नीचे ले आइए।


बिना घुटने मोड़े फर्श को छूने की कोशिश करें। यथासंभव सिर को पाँवों से छूने का प्रयास करें। दस तक गिनती होने तक इसी मुद्रा में रहें। अपनी पकड़ ढीली कर सामान्य अवस्था में आ जाएँ। इस आसन से पीठ, पेट और कंधे की पेशियाँ मजबूत होती हैं और रक्त संचार ठीक रहता है।

सूर्य नमस्कार योगासनों में सर्वश्रेष्ठ प्रक्रिया है

 सूर्य नमस्कार योगासनों में सर्वश्रेष्ठ प्रक्रिया है। यह अकेला अभ्यास ही साधक को सम्पूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है। मानव शरीर की सरंचना ब्रम्हांड की पंच तत्वों से हुआ है। और इसे (शरीर रूपी यंत्र) सुचारू रूप से गतिमान स्नायु तंत्र करता है। जिस व्यक्ति के शरीर में स्नायुविक तंत्र जरा सा भी असंतुलित होता है वो गंभीर बीमारी की ओर अग्रसर हो जाता है। "सूर्य नमस्कार" स्नायु ग्रंथि को उनके प्राकृतिक रूप में रख संतुलित रखता है। इसके अभ्यास से साधक का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है। 'सूर्य नमस्कार' स्त्री, पुरुष, बाल, युवा तथा वृद्धों के लिए भी उपयोगी बताया गया है।

श्वास क्रिया कैसे करें

सीधे खड़े होकर दोनों हाथों की उँगलियाँ आपस में फँसाकर ठोढ़ी के नीचे रख लीजिए। दोनों कुहनियाँ यथासंभव परस्पर स्पर्श कर रही हों। अब मुँह बंद करके मन ही मन पाँच तक की गिनती गिनने तक नाक से धीरे-धीरे साँस लीजिए।

इस बीच कंठ के नीचे हवा का प्रवाह अनुभव करते हुए कुहनियों को भी ऊपर उठाइए। ठोढ़ी से हाथों पर दबाव बनाए रखते हुए साँस खींचते जाएँ और कुहनियों को जितना ऊपर उठा सकें उठा लें। इसी बिंदु पर अपना सिर पीछे झुका दीजिए। धीरे से मुँह खोलें। आपकी कुहनियाँ भी अब एकदम पास आ जाना चाहिए। अब यहाँ पर छ: तक की गिनती गिनकर साँस बाहर निकालिए।

अब सिर आगे ले आइए। यह अभ्यास दस बार करें, थोड़ी देर विश्राम के बाद यह प्रक्रिया पुन: दोहराएँ। इससे फेफड़े की कार्यक्षमता बढ़ती है। तनाव से मुक्ति मिलती है और आप सक्रियता से कार्य में संलग्न हो सकती हैं।

Recent posts

<b><p style="color:red">आधुनिक काल</b></p>

 स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो के धर्म संसद में अपने ऐतिहासिक भाषण में योग का उल्लेख कर सारे विश्व को योग से परिचित कराया। महर्षि महेश योगी, प...

Popular Posts