योग शास्त्र में मुद्राओं का एक अलग विभाग है। इन मुद्राओं का निर्माण आसन, प्राणायाम एवं बंधों को समन्वित कर किया गया है।
मुद्राओं के माध्यम से हम शरीर की उन क्रियाओं को नियमित करने का प्रयास करते हैं, जो हमारे वश में नहीं हैं।
योगमुद्रा को कुछ योगाचार्यों ने 'मुद्रा' के और कुछ ने 'आसनों' के समूह में रखा है, लेकिन इसे आसन ही माना गया है। यह आसन करने में अत्यंत सरल है।
सर्वप्रथम पद्मासन में बैठते हैं, इसके बाद दोनों हाथ पीछे लेकर दाहिने हाथ से बाएं हाथ की कलाई पकड़ते हैं। अब लंबी और गहरी श्वास अंदर लेते हैं तथा शरीर को शिथिल करते हुए धड़ को धीरे-धीरे बाईं जंघा पर रखते हैं। ऐसा करते समय श्वास छोड़ते हैं।
कुछ समय तक इसी अवस्था में रहने के बाद पुनः पहले वाली स्थिति में आ जाते हैं। अब यही क्रिया सामने की ओर झुककर करते हैं। ऐसा करते समय मस्तक और नाक दोनों जमीन से स्पर्श करते हैं। कुछ समय तक इसी अवस्था में रहने के बाद मूल स्थिति में आते हैं। फिर धड़ को दाहिनी जंघा पर रखते हैं।
यह आसन करने में आसान परंतु बड़ा लाभदायक है। इससे पेट का व्यायाम होता है तथा अपचन एवं पेट की अन्य शिकायतें दूर होती हैं। रीढ़ की हड्डी का भी अच्छा व्यायाम होता है और वह अपना काम सुचारु रूप से करती है। इस आसन के दौरान गर्दन एवं टांगों की मांसपेशियों का भी व्यायाम होता है।
कभी-कभी धड़ को सामने या दाहिनी ओर झुकाते समय पीठ, घुटनों या जांघों पर अधिक जोर पड़ता है। ऐसे समय जोर-जबर्दस्ती न करें।
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